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NITI AYOG

अगस्त 1947 में, जब भारत आजाद हुआ, तो हमारे लिए सबसे बड़ी समस्या यह थी- कि देश का विकास कैसे होगा। लगभग 200 साल की गुलामी के बाद एक नया भारत बना था, एक डेमोक्रेटिक देश। इसे चलाने के लिए संविधान भी बनने लगा था। लेकिन विकास के लिए कौन सा गवर्निंग सिस्टम अपनाया जाए, ये नेताओं के लिए, एक बड़ा चैलेंज था। इसलिए, समाजवादी और पूंजीवादी व्यवस्था को मिश्रित तौर पर अपनाया गया। और नेताओं ने, पंचवर्षीय योजनाओं के जरिए, देश के विकास का सुझाव रखा। इस सपने को पूरा करने के लिए, 15 मार्च, 1950 को, भारत के पहले प्रधान मंत्री- जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में, तत्कालीन भारत सरकार ने एक कार्यकारी संस्था बनाई, जिसका नाम था- प्लानिंग कमीशन यानी योजना आयोग। भारत ने, प्लानिंग कमीशन का आइडिया रूस से, अडॉप्ट किया था। ये एक गैर संविधानिक निकाय था। इसके 2 मेन काम थे। पहला पंचवर्षीय योजनाएं बनाना और दूसरा- डिफरेंट मिनिस्ट्रीज और राज्यों को, पैसा आवंटित करना। लगभग 65 साल तक ये आयोग, देश का योजना वाहक बना रहा, लेकिन 17 अगस्त 2014 को इसे भंग कर दिया गया। जिसके बाद, 1 जनवरी 2015 को 'National Institution for Transforming India यानी ''नीति आयोग'' ने इसकी जगह ले ली। ये मिनिस्ट्री ऑफ प्लानिंग के तहत आता है! इसका मूल दर्शन : सहकारी संघवाद यानी Cooperative Federalism है। ये सरकार का थिंक टैंक है। नीति आयोग के उद्देश्य: नीति आयोग, मानता है कि विकसित राज्य ही, एक विकसित देश बना सकते हैं। इसलिए इसका उद्देश्य, विभिन्न राज्यों के मैकेनिज्म में सुधार करके, उन्हें एकसाथ लाना है। ग्रामीण भारत के लिए योजनाएं बनाना और नेशनल से लेकर, ग्लोबल लेवल पर इनोवेशन और रिसर्च को बढ़ावा देना और एग्रीकल्चर सेक्टर का विकास करना है। इसका एक उद्देश्य ग्लोबल लेवल पर, भारत के मुद्दों को उठाना भी है। नीति आयोग के 7 स्तंभ हैं- Pro-people (जनपक्षधर) Pro-activity (समर्थक गतिविधि) Participation (भाग लेना) Empowering (सशक्तीकरण) Inclusion of all (सबका समावेश) Equality (समानता) Transparency (पारदर्शिता)

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नीति आयोग की संरचना: नीति आयोग की संरचना की बात करें, तो इसमें कुछ सदस्य पूर्णकालिक, तो कुछ अंशकालिक होते हैं। इसमें एक चेयरमेन होते हैं, जो कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। इसमें एक उपाध्यक्ष भी होते हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री ही अपॉइंट करते हैं। इसके अलावा नीति आयोग में, फुल टाइम मेंबर, Part टाइम मेंबर, एक्स ऑफिशियो मेंबर, गवर्निंग काउंसिल और विशेष आमंत्रित सदस्य शामिल हैं। इनमें से गर्वनिंग काउंसिल सबसे अहम भाग है, क्योंकि ये गवर्निंग काउंसिल ''योजना आयोग में नहीं थी। जैसा कि हम जानते हैं, योजना आयोग में, मुख्यमंत्रियों को कोई अहमियत नहीं दी गई थी, लेकिन नीति आयोग की इस गवर्निंग काउंसिल में, सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्र शासित प्रदेशों के एलजी शामिल होते हैं। डिवीजन: नीति आयोग को 2 हब में बांटा गया है। मतलब इसके 2 डिविजन हैं। पहला- टीम इंडिया हब, जिसमें, केंद्र और राज्य मिलकर, पॉलिसी बनाते हैं। ये राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए कोलेक्टिव अप्रोच रखता है, जो राज्यों के एक-दूसरे के साथ, अच्छी कम्युनिकेशन बनाने में मदद करता है। और दूसरा- नॉलेज एंड इनोवेशन हब। इसका काम, आम जनता की स्किल डेवलपमेंट है। नीति आयोग के कार्य: इसके मुख्य 2 काम हैं। 1) अगर आसान शब्दों में समझें, तो इसका मेन काम नीति और कार्यक्रमों का फ्रेमवर्क बनाना है। 2) और सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना है। मतलब, इंडिया की ट्रांसफोरमेशन के लिए, रिसर्च एंड इनोवेशन को प्रोमोट करना, मॉनिटरिंग एंड इवैल्यूएशन, पॉलिसी एंड प्रोग्राम फ्रेमवर्क बनाना, और इकॉनॉमी ग्रोथ बढ़ाने के लिए, सरकार को सलाह देना, नीति आयोग का काम है। नीति आयोग का मेन काम, सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर सरकार को सलाह देना है, ताकि सरकार ऐसी नीतियां बनाए, जो आम जनता के लिए सही हों। इसका दूसरा काम, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में, कॉपरेशन को इंप्रूव करना है। बीवीआर सुब्रमण्यम, नीति आयोग के वर्तमान CEO हैं। योजना आयोग को, बदलकर, नीति आयोग की जरूरत क्यों पड़ी योजना आयोग को मोडिफाई करके, नीति आयोग इसलिए, लाना पड़ा, क्योंकि योजना आयोग ग्राउंड लेवल पर जाने में असफल रहा था। दरअसल, इसमें हर स्टेट के लिए, एक ही पॉलिसी बनाई जाती थी। भारत का हर एक राज्य, दूसरे से अलग है, हर राज्य की अपनी ताकत और कमजोरियां हैं, इनकी अलग जरूरतें हैं, ऐसे में यही योजना आयोग, सबसे बड़ी डिमैरिट थी।

योजना आयोग और नीति आयोग में अंतर: दोनों आयोग, भारत सरकार के केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा बनाया गए हैं। इन दोनों का काम, देश के लिए नीतियां बनाना था, लेकिन अपने काम और कार्यक्षेत्र को लेकर दोनों अलग हैं। योजना आयोग में, मंत्रालयों और राज्य सरकारों को धन आवंटित करने की शक्तियाँ थीं, लेकिन नीति आयोग में ऐसा नहीं है। योजना आयोग में, केंद्र नीतियां बनाता था, और राज्य लागू करते थे। यानी राज्यों से सलाह नहीं ली जाती थी। लेकिन नीति आयोग राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सलाह पर ही, नीतियां बनाता है। भारत एक डायवर्स कंट्री है, लेकिन योजना आयोग, सबके लिए एक समाधान के सिद्धांत पर काम करता था। संपूर्ण भारत पर एक समान नीतियाँ लागू करता था। और नीति आयोग, हर राज्य की जरूरत के अनुसार नीतियां बनाता है। लेकिन फिर भी नीति आयोग, में अभी भी, कुछ कमियां हैं। जैसे इसके पास, राज्यों को धन आवंटित करने की पॉवर नहीं है। और यह सिर्फ, एक सलाहकार निकाय है, जो एडवाइस तो देता है, लेकिन इसके पास एक्शन लेने की पॉवर नहीं है। निष्कर्ष- इसलिए, नीति आयोग को, और ज्यादा पॉवर, अधिकार और रिसोर्स देने की जरूरत है। नीति आयोग, जो भी नीतियां बनाता है, उनके लिए, कानूनी तौर पर इसकी, जवाबदेही तय होनी चाहिए। आयोग के हर सदस्य को, जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। ताकि कोई भी, अपने निजी स्वार्थ के लिए, इस संगठन की शक्ति का मिस्यूज न कर सके। नीति आयोग का काम ही, राज्यों की कोपरेशन है। लेकिन पिछले कुछ सालों में, हमने देखा है, कि केंद्र और राज्य सरकारों के आपसी मतभेद की वजह से, ज्यादातर राज्य, नीति आयोग की मीटिंग में, हिस्सा ही नहीं लेते। अभी हाल ही में, मई 2023 की बैठक में, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी और नीतीश कुमार, समेत 11 मुख्यमंत्री इस बैठक में शामिल नहीं हुए। हर राज्य की जरूरत के अनुसार, पॉलिसी बनाई जा सके, सिर्फ इसिलिए नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल बनाई गई है। जब इसकी बैठकों में, मुख्यमंत्री हिस्सा नहीं लेंगे, अपने-अपने राज्य को रिप्रेजेंट नहीं करेंगे, तब तक उनके राज्य के हिसाब से नीतियां कैसे बनेंगी। मुख्यमंत्रियों को, ये समझने की जरूरत है, ताकि राज्य का विकास, पॉलिटीशियंज के आपसी मतभेद की बलि न चढ़े। केंद्र सरकार का काम, पूरे देश को एक साथ लेकर चलना है, पूरे देश के बारे में सोचना है। इसलिए केंद्र सरकार को, दूसरे राजनीतिक दलों के साथ, आपसी मतभेद भुलाकर, सभी राज्यों को, एक जैसे ही सपोर्ट करना चाहिए। ताकि, हम जिस नए और अखंड भारत का सपना देखते हैं, वो पूरा हो सके। द रेवोल्यूशन- देशभक्त हिंदुस्तानी, सभी पालिटीकल पार्टियों से अपील करता है कि उनके आपसी मतभेद, देश के विकास के बीच, नहीं आने चाहिए।